शनिवार, 4 अप्रैल 2009

सीताराम येचुरी .. हमारे नए वित्त मंत्री ?


मैं मजाक नहीं कर रहा हूं .. चुनावी गतिविधियों को देखने के बाद मुझे तो ऐसा ही लगता है कि सीताराम येचुरी हमारे नए वित्त मंत्री बन सकते हैं।

क्यों ? इसलिए क्योंकि हमने मुख्यधारा की लगभग सभी पार्टियों को सरकार में देख लिया है, प्रधानमंत्री या दूसरे मंत्रियों के रूप में देख लिया है। एक बस वाम दल ही केंद्रीय सरकार में नहीं आए (1996 की संयुक्त मोर्चा सरकार को छोड़ कर, जिसमें कॉमरेड इंद्रजीत गु्प्त और चतुरानन मिश्र मंत्री बने थे थोड़े समय के लिए)।

इसलिए भी कि येचुरी साहब के बड़े जबरदस्त ख्यालात हैं .. अर्थव्यवस्था के बारे में, मंदी से निपटने के बारे में .. ।
जरा उनके चुनावी घोषणापत्र पर नजर डालिए .. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी अपने घोषणापत्र के पृष्ठ 10 पर कहती है कि अगर भारतीय वित्तीय संस्थान मंदी के इस दौर में भी सुरक्षित बचे हैं तो इसका श्रेय उन्हें जाता है। उन्हें इसलिए क्योंकि उन्होंने वर्तमान यूपीए सरकार को वित्तीय संस्थानों में फेरबदल करने से रोका, उन्हें स्वायत्तता देने, उन्हें निजीकरण से बचाया .. वगैरह..वगैरह..।

माकपा के घोषणापत्र का सबसे मजेदार हिस्सा है घरेलू वित्तीय संस्थानों पर नकेल कसने के संबंध में (पृष्ट 15/माकपा घोषणापत्र)। इसके बारे में मेरे एक मित्र का कहना है कि अगर इन सुझावों को मान लिया जाय तो 1991 से चल रही नई आर्थिक नीति को हम सिर के बल खड़ा कर देंगे।
माकपा के घोषणापत्र का एक और मजेदार हिस्सा है जहां वो घरेलू धनकुबेरों पर नए टैक्स लगाने की बात करते हैं। इस संबंध में मैंने कुछ दिनों पहले येचुरी साहब को एक टीवी चैनल पर अपना पक्ष बयान करते सुना .. क्या ईमानदारी थी और कितने प्रतिबद्ध वो लग रहे थे ..। ईमानदारी से कहूं तो इस कार्यक्रम को देखने के दौरान ही ये बात मेरे दिमाग में कौंधी कि येचुरी साहब हमारे नए वित्त मंत्री बन सकते हैं।
ये भी सवाल मन में गूंजा कि भारत कैसा लगेगा जब भारत के वित्त मंत्री सीताराम येचुरी जैसे एक वामपंथी नेता होंगे? जरा इस सवाल के जबाव को टटोल कर देखिए ..।
ऐसे क्यों सीताराम येचुरी हमारे नए वित्त मंत्री बन सकते हैं .. इसके पक्ष में मेरे पास एक और कारण है ..।
चुनावों में दिलचस्पी मेरी भी है और चुनावी विश्लेषकों की इस भीड़ से मैं भी अलग नहीं हूं। मैंने भी चुनावों के नतीजे का एक खाका तय किया है, मेरी अपनी भविष्यवाणियां हैं और उनके आधार पर मैं ये कहना चाहता हूं कि हमारे अगले प्रधानमंत्री भाजपा या कांग्रेस से नहीं होंगे .. वे किसी तीसरे ही दल के नेता/नेत्री होंगे और आने वाली सरकार भी एक खिचड़ी सरकार होगी, गठबंधन सरकार होगी। ये हो सकता है कि इस सरकार को भाजपा बाहर से समर्थन दे या फिर कांग्रेस समर्थन भी दे और सरकार का हिस्सा भी बन जाए। लेकिन इन दोनों पार्टियों की सरकार तो नहीं ही बनने जा रही है। हालांकि इन भविष्यवाणियों के बारे में विस्तार से मैं अगली बार लिखूंगा .. उस बार मैं अपना राज्यवार आंकड़ा दूंगा और नतीजे आने तक इन पर कुछ-न-कुछ लिखता रहूंगा।
खैर, तो विषय पर लौटते हुए .. मेरा मानना है कि अगले सरकार के गठन में भी वाम दलों की बड़ी भूमिका होगी। यहां मैं एक और भविष्यवाणी करना चाहता हूं कि इस बार बनने वाली सरकार में वामदल भी शामिल होंगे, माकपा सहित। जी हां, इस बार वे 1996 की ऐतिहासिक भूल को नहीं दुहराएंगे, जब ज्योति बसु को तीसरे मोर्च ने अपना नेता चुना था, ज्योति दा प्रधानमंत्री बनना भी चाहते थे लेकिन पार्टी (माकपा) ने इसकी मंजूरी नहीं दी थी।
मुझे तो साफ लगता है कि माकपा सहित बाकी वामपंथी पार्टियां इस गलती को फिर से नहीं दुहराएंगी, चाहे जो भी हो जाए। और प्रकाश करात साहब के धुरजोर विरोध के बावजूद ऐसा होगा, ये भी मैं मानता हूं। ऐसा मैं ही नहीं, कई वाम नेता भी मानते हैं। इन नेताओं का ये भी मानना है कि यूपीए सरकार में शामिल नहीं होने का फैसला भी एक ऐतिहासिक भूल थी। मेरी जानकारी के मुताबिक इस मसले पर माकपा सहित सभी वाम दलों में खासा मतभेद है।
इसलिए अगली सरकार के गठन में हर पार्टी, हर दल अपने लिए सोने की लंका तलाशेगी और जाहिर तौर पर वाम दल भी इसके अपवाद नहीं होंगे। मेरी जानकारी के मुताबिक नई सरकार में शामिल होने के लिए वे वित्त मंत्रालय, शिपिंग, रेलवे और ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालयों की मांग कर सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए कि ये वे मंत्रालय जिन्होंने पिछले पांच सालों में माकपा के पश्चिम बंगाल सरकार के लिए सबसे ज्यादा अड़चनें पैदा की।
यहां मैं एक बात और स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं कभी भी वामदलों का समर्थक नहीं रहा हूं। हां, वाममार्गी जरूर हूं लेकिन विद्यार्थी जीवन में मैंने हमेशा वाम दलों की राजनीति का विरोध ही किया है और आज भी उनकी राजनीति का विरोधी हूं। इतना जरूर है कि वामपंथ की कई बातें मुझे लगती हैं कि जीवन में उतारने की जरूरत है या उनके लागू किए जाने से आम आदमी का खासा भला हो सकता है।
तो खैर, विषय पर लौटते हुए .. मुझे लगता है कि पं. बंगाल में वाम दलों को अच्छी-खासी सीटें इस बार भी मिल जाएंगी (पिछली बार से थोड़ी कम) लेकिन केरल में उनका सफाया हो सकता है। मेरे ख्याल से ममता बैनर्जी को इन चुनावों में ठीक-ठाक तवज्जो मिल जाएगी और तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन को इस बार पं. बंगाल में 12-13 सीटें मिल सकती हैं। ये बहुत आशावादी दृष्टिकोण है मेरा मतलब ये कि इससे ज्यादा तो नहीं ही मिलेगी। इस मामले में अंग्रेजी के बड़े अखबारों या न्यूज चैनलों से मैं भिन्न दृष्टिकोण रखता हूं। मेरा मतलब ये है कि अंग्रेजी के अखबार बार-बार पं. बंगाल में बदले हुए मौसम की बात कर रहे हैं लेकिन ये वोट में परिवर्तित हो पाएगा, इस पर मुझे शंका है।
मेरी स्पष्ट राय है कि लाख प्रयत्नों के बावजूद ममता दी वाम दलों के बंगाल किले को बहुत हिला नहीं पाएंगी और अकेले माकपा को 20 से ज्यादा सीटें इन चुनावों में बंगाल से मिल सकती हैं।
इन नतीजों के चलते नई सरकार के गठन के दौरान पं. बंगाल अपना हिस्सा मांगेगा और प्रकाश करात अगर अपनी जिद पर अड़े रहे तो महासचिव होने के बावजूद वो पार्टी में अकेले पड़ सकते हैं। मतलब ये कि सरकार के गठन में माकपा के रोल का बड़ा हिस्सा पं. बंगाल के मार्क्सवादी तय करेंगे और केरल में चूंकि उनका सफाया हो चुका होगा, इसलिए केरल लॉबी के समर्थन के बावजूद करात साहब की ज्यादा चलेगी नहीं।
ऐसे में मुझे लगता है कि माकपा की ओर से मंत्री बनने के लिए जो दो सबसे योग्य उम्मीदवार हैं - उनमें सीताराम येचुरी वित्त मंत्री के रूप में और मो. सलीम किसी और मंत्रालय में। चार से ज्यादा माकपा को कोटा नहीं मिलने वाला। लिहाजा बाकी दो नामों पर आप भी जूझिए/भविष्यवाणी कीजिए और मैं भी अपनी किस्मत कुछ दिनों बाद आजमाऊंगा।

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