शनिवार, 16 जून 2007

एक आशीर्वाद / दुष्यन्त कुमार की कविता

जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद-तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये
रूठना-मचलना सीखें।

हँसें
मुस्कुराऐं
गाऐं।

हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें
उँगली जलायें।
अपने पाँव पर खड़े हों।

जा तेरे स्वप्न बड़े हों।

- दुष्यन्त कुमार

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