सोमवार, 2 नवंबर 2009

आभार


अरसे बाद नीचे की कुछ पंक्तियां रविवार की सुबह अनायास मुंह से निकले, मैंने उन्हें नोट कर लिया ... और इस तरह काफी दिनों के बाद कुछ लिखा / जीवन फिर सार्थक लगा



जीवन में
क्या कभी हुआ है
आपके साथ

...कि
आप सो कर उठें
और
अजाने ही आभार
व्यक्त करने लगें
उन सबों का
जिन्होंने जीवन के हर मोड़ पर
आपका साथ दिया /
आपको प्रेरित किया /
जीवन के कठिनतम मोड़ पर भी
आपके संग चले

...कि
आप कृतज्ञ हो उठें
अनायास
उनके भी
जिनसे आपने
और जिन्होंने आपसे
बनाए रखीं दूरियां

...कि
आप कृत-कृत्य हो उठें
अपने होने में
दूसरों के योगदान का

...कि
आपकी अधखुली आंखों में
सुबह की रोशनी भरने से पहले
अनजाने में ही
शुक्रिया अदा करने के लिए
जुड़ जाएं
हाथ आपके

(जैसे छठ मैय्या को अर्घ्य देते हुए
जुड़ जाते हैं मां के हाथ)

.....

आज सुबह मेरे साथ
कुछ ऐसा ही हुआ

.....

दोपहर का ये चमकता सूर्य /
शाम का छाता धुंधलका /
रात में शहर की इन
चमचमाती रोशनियों के बाद भी

सुबह की गोधूलि वेला
की वो अनुभूति
अब भी बरकरार है /
आज जितना हल्का मन
पहले शायद कभी नहीं था

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